रविवार, 24 अप्रैल 2011

BACHAPAN

   एक शून्य था उसमे घूमते रहे ये पापा ये मम्मी ये भाई ये बहन  पर सच कुछ और था . सच कुछ और था कोई अपना नहीं था , सब कुछ समय के लिए अपनो में शामिल थे . सबको अपने मजिल की तलाश थी . पर हमे सबके मंजिल की तलाश थी .सबकी मंजिले मिलाती रहीं और मैं अकेला सबमे अपने को ढूढता  रहा . पर आज ऐसा लग रहा है की ......................................................................................................

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