शनिवार, 16 अप्रैल 2011

BACHPAN

छोटा सा था  जब अपनों की तलाश सुरु की . समझना कठिन था कौन अपना है कौन पराया .पर खुद से पुछा तो पाया की सब अपने है अपना परिवार अपना समाज अपना देश अपना भगवान. पर आज इस मोड़ पर आकर लगा की सब धुंध  था . मंजिल कहीं नहीं थी . .............................................................................................................................................................................................................................................................................धुंध ..................................................................................................................और सिर्फ धुंध ..............................................................................एक तलाश    ....................................................................................................न ख़त्म होने वाली तलाश .................................................................................पता नहीं मंजिल कहाँ है ? है भी या नहीं ?....................................................या सुब कुछ. एक अंजन रास्ता और कुछ नहीं .

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